भितिहरवा गांधी संग्रहालय में सूत कताई व कपड़ा बुनाई का मिलेगा प्रशिक्षण

बेतिया । भितिहरवा गांधी गांधी संग्रहालय में शीघ्र हीं सूत कताई और कपड़े की बुनाई का प्रशिक्षण होगा। गांधी जयंती के अवसर पर यह प्रशिक्षण आरंभ किया जाएगा। संग्रहालय के प्रभारी डॉ शिवकुमार मिश्र ने बताया कि बिहार राज्य खादी बोर्ड के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी अशोक कुमार सिन्हा ने भितिहरवा आश्रम परिसर में दो सत्रों में महिलाओं के स्वावलंबन एवं खादी के संवर्धन के लिए प्रशिक्षण आरंभ करने का निर्णय लिया है। पहले सत्र में सूत कताई का प्रशिक्षण दिया जाएगा। यह प्रशिक्षण एक महीने तक चलेगा। प्रशिक्षण में स्थानीय महिलाओं एवं युवतियों को शामिल किया जाएगा। सूत कताई प्रशिक्षण में महिलाएं व युवतियां के दक्ष होने के बाद कपड़े की बुनाई का प्रशिक्षण होगा। फिलहाल प्रशिक्षण में 25 प्रतिभागियों को शामिल किया जाना है। इसमें वैसी महिलाओं व युवतियों को शामिल किया जाना है, जो सूत कताई और खादी वस्त्र की बुनाई को अपने पेशा के रूप में अपनाने में अभिरुचि रखती हो। संग्रहालय की ओर से सूत कताई व कपड़े की बु़नाई के बाद बिक्री की व्यवस्था की जाएगी। प्रशिक्षु महिलाओं को युवतियों को मानक पारिश्रमिक का भुगतान किया जाएगा। खादी बोर्ड की ओर से छपरा एवं गोपालगंज खादी बोर्ड के नागेंद्र कुमार को इसके लिए संबद्ध किया गया है। खादी प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन के लिए डॉ. मिश्र की अध्यक्षता में आश्रम परिसर में गुरुवार को एक बैठक हुई । बैठक में जिला खादी बोर्ड छपरा के अधिकारी उमेश द्विवेदी ,गोपालगंज के नागेंद्र कुमार, तकनीकी सहायक राजेश कुमार, रत्नेश कुमार वर्मा एवं अन्य समाजसेवी उपस्थित रहे।

गांधी जी ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने पर दिया था जोर डॉ. मिश्र ने बताया कि गांधी जी यहां वर्ष 1917 में आए थे। उन्होंने भितिहरवा गांधी आश्रम की स्थापना की थी। यहां के लोगों को स्वस्थ, शिक्षित एवं स्वावलंबी बनाना था। लोगों को अपनी पेशा को विकसित कर अर्थोपार्जन के लिए प्रेरित किया जाता था। भितिहरवा के अलावा बड़हरवा लखन सेन एवं मधुबन में भी गांधी जी के द्वारा विद्यालयों की स्थापना की गई थी। उसमें भी महिलाओं को परंपरागत पेशा अपना कर आत्मनिर्भर बनाने के लिए उत्प्रेरित की जाती थी। गांधी जी का स्पष्ट कहना था कि जब तक हमारे देश के लोग स्वावलंबी नहीं बन जाते तब तक स्वराज का कोई लाभ नहीं हो सकता। इसी उद्देश्य से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया गया। जिसके लिए माता कस्तूरबा एवं अन्य शिक्षिकाओं को चंपारण लाया गया था।

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