भागलपुर। रेशम उद्योग इस समय धागों की कमी और दामों के उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर रहा है। जीरोमाइल चौक स्थित केंद्रीय रेशम बोर्ड द्वारा संचालित बुनियादी बीज प्रगुणन व प्रशिक्षण केंद्र से सरकार द्वारा निर्धारित दर पर किसानों से तैयार कोकून लेना है। इसके लिए प्रति कोकून के कोए की कीमत राज्य सरकार द्वारा 3.5 रुपये निर्धारित की गई हैं। नवंबर माह में एक लाख कोकून का ही जुगाड़ हुआ है। ऐसे में बिचौलियों की नजर इस पर है।
किसानों से लुभाने के लिए छह रुपये में उसकी खरीदारी की जा रही है। इससे किसान अब केंद्र को कम मूल्य पर कोकून नहीं देना चाहते हैं। निजी हाथों में कोकून जाने के बाद रेशमी धागों की कीमत अनियंत्रित होगी। नतीजतन मनमाने कीमतों पर रेशमी धागों की खरीदना पड़ सकता है, जबकि रेशमी शहर के बुनकरों को करीब 2000 किलोग्राम रेशम धागों की जरूरत है।
कोकून अंडा तैयार करने में होगी समस्या कोकून से तसर धागे तैयार करने के लिए अंडे तैयार किए जाते हैं। यहां किसानों को प्रशिक्षण देने के बाद उन्हें अंडे उपलब्ध कराए जाते हैं। बांका के कटोरिया, इनारावरण आदि क्षेत्र के करीब 70 से अधिक किसानों को अंडे दिए गए थे। वे केंद्र को चार लाख उत्पादित कोकून में से एक लाख ही देने को तैयार हैं,
जबकि केंद्र चार से पांच लाख कोकून की मांग कर रहा है। ऐसे में कोकून भंडारण की समस्या बनी हुई। अगर पर्याप्त भंडारण नहीं मिले तो अंडा तैयार करने में समस्या होगी, जिसका प्रभाव तसर कीट पालन पर भी पड़ेगा। ऐसे में कोकून भंडारण की समस्या होगी।
केंद्र में प्रति वर्ष 90 हजार डीएलएफ तैयार किया जाता है। एक सौ डीएलएफ में 200 ग्राम अंडे होते हंै। इससे करीब 18 से 20 हजार कोकून तैयार होते हंै। इसमें से 80 हजार डीएलएफ छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, झारखंड व बिहार समेत राज्य सरकार को उपलब्ध कराया जाता है। भागलपुर व बांका के किसानों को 10 हजार डीएलएफ दिया जाता है। इससे करीब 10 लाख कोकून तैयार करते हैं। इसमें से केंद्र को अंडा तैयार करने के लिए पांच लाख गुणवत्तापूर्ण कोकून की जरूरत हैं।
इस योजना से कितने कोकून उत्पादक
बांका जिले के करीब 70 से अधिक किसान परिवार तसर कीट पालन से जुड़े हैं। इससे किसानों को काम मिल रहा है। कोकून तैयार करने में करीब चार माह का समय लगता है। इससे पक्षियों से सुरक्षित रखने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। जितनी मेहनत इस कार्य में हैं उसके अनुरूप दाम नहीं मिलता। सरकारी दर काफी कम है। इसके कारण खुले बाजार में बेचना पड़ता है।
कारोबारी महंगी कीमत में खरीदारी करते हैं, लेकिन उधार देना पड़ता है। राशि वसूली के लिए सालों भर व्यापारी के चक्कर लगाने पड़े हैं। कोकून उत्पादकों को झांसा देकर सरकारी लाभ से वंचित करने की सोची-समझी चाल रहती है। कई बार तो उत्पादकों को अधिक पैसे देकर बाद में कोकून खरीदने से मुकर जाते हैं। किसान मीरा ने बताया कि गरीब किसानों को मिट्टी के भाव में कोकून बेचने को बाध्य होना पड़ता है।
कोकून उत्पादकों की मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जा रहा है। उच्चाधिकारियों से भी परामर्श किया जा रहा है।
– संजय कुमार वर्मा, महाप्रबंधक, जिला उद्योग केंद्र