बिहार के सिवान में है भाई और बहन का अनोखा मंदिर, रक्षाबंधन पर अधूरी रह गई थी राखी बांधने की आस

दारौंदा (सिवान)। Raksha Bandhan Special Story: भारतीय समाज में रक्षाबंधन इतना महत्‍वपूर्ण त्‍योहार है कि इसे हिंदुओं के अलावा कई दूसरे मतों को मानने वाले परिवार भी मनाते हैं। इस पर्व को लेकर तमाम लोक कथाएं हैं किंवदंतियां हैं। यह पर्व भाई और बहन के प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। ऐसे मौके पर आपको बिहार के एक मंदिर की कहानी जानकर हैरानी हो सकती है, जहां भाई और बहन की बकायदा पूजा होती है। यह मंदिर है सिवान जिले के दारौंदा प्रखंड के भीखाबांध गांव में। यहां विशाल मेला लगता रहा है।

कोरोना संक्रमण के कारण नहीं लगेगा मेला

कोरोना महामारी की तीसरी लहर को लेकर इस बार प्रखंड के भीखाबांध का ऐतिहासिक भैया बहिनी मंदिर में लगने वाले मेला इस बार नहीं लगेगा। फिर भी रविवार को भैया बहिनी के अटूट प्रेम की पूजा शारीरिक दूरी के तहत होने की संभावना है। भीखाबांध स्थित भैया-बहिनी मंदिर भाई- बहन के अटूट प्रेम एवं विश्वास का प्रतीक है। यह मंदिर प्रखंड मुख्यालय से 12 किलोमीटर उत्तर एवं महाराजगंज अनुमंडल से चार किलोमीटर पूरब सिवान -पैगंबरपुर पथ के किनारे स्थित है।

Whatsapp Group Join
Telegram channel Join

मंदिर का है ऐतिहासिक महत्व

इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि मुगल शासक काल में एक भाई अपनी बहन को राखी के मौके पर दो दिन पहले ही डोली में बिठाकर भभुआ (कैमूर) से अपने गांव ला रहा था। भीखाबांध गांव के समीप मुगल सिपाहियों ने डोली में बैठी दुल्‍हन को देखा तो उस की सुंदरता देखकर उनके मन में गलत भावना भर गई। सिपाहियों ने डोली को रोक कर बहन के साथ गलत हरकत करने का प्रयास करने लगे। इस पर भाई अपनी बहन की रक्षा के लिए सिपाहियों से उलझ गया। कहा जाता है कि बहन अपने आप को असहाय महसूस करते हुए भगवान को याद की। उसी समय धरती फटी और भाई-बहन दोनों उसी में समा गए। डोली उठा रहे कुम्हारों ने वहां स्थित कुएं में कूद कर जान दे दी।

दो वट वृक्ष कई बीघा में फैले

कहा जाता है कि इस घटना के दिनों बाद यहां एक ही स्थल पर दो वट वृक्ष निकले, जो कई बीघा जमीन पर फैल गए। ये वृक्ष ऐसे दिखाई देते हैं कि मानो लगता है कि एक-दूसरे की सुरक्षा कर रहे हों। यहां पूजा करने वालों  की मनोकामनाएं पूरी होती गईं। इसके बाद यहां एक मंदिर का निर्माण हुआ। इसमें भाई-बहन के पेड़ की पूजा होती है। भाई-बहन सोनार जाति के होने के चलते सबसे पहले इन्हीं की जाति के लोगों द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है।

रक्षाबंधन के दो दिन पहले होती है पूजा

प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन के दो दिन पहले पूजा-अर्चना शुरू हो जाती है, लेकिन इस बार कोविड संक्रमण की वजह से यह मंदिर बंद है। बिहार में मंदिरों को खोलने की इजाजत अभी सरकार ने नहीं दी है। यहां कम श्रद्धालुओं की पहुंचने की उम्मीद है। ग्रामीणों ने बताया कि यहां अतिक्रमण के चलते वट वृक्ष कुछ कट्ठा में सिमट कर रह गया है। इस मंदिर की जीर्णोद्धार के लिए प्रशासनिक स्तर पर आज तक कुछ भी प्रक्रिया शुरू नहीं की गई। ग्रामीणों ने प्रशासन से इस मंदिर एवं वटवृक्ष की ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की मांग की है।