राजस्थान इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के एमडी ने सरगुजा के डीएम और एसपी से की मुलाकात, खदानों पर कही यह बात

सरगुजा जिले में राजस्थान इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड की दो नई खदानें शुरू करने की अनुमति मिलने के बावजूद काम शुरू नहीं हो पा रहा है।

जिसे लेकर राजस्थान इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के एमडी शिसभ शर्मा ने सरगुजा कलेक्टर और एसपी से मुलाकात की। उन्होंने एबीपी न्यूज को बताया कि एक खदान पहले से है और दो नई खदानें अभी शुरू होने वाली हैं। उन्होंने कहा कि कोल माइंस की केंद्र सरकार और राज्य सरकार से स्वीकृतियां मिलने के बावजूद काम शुरू नहीं हो पा रहा है।

इससे परेशानी यह है कि कुल 7 हजार 500 मेगावाट की जेनरेटिंग यूनिट थर्मल बेस्ड है, कोल पर आधारित है। उनमें से 4 हजार 340 मेगावाट की जो पावर यूनिट है। उनको कोयला यहीं के ही कोल माइंस से जाता है। कोल माइंस का जो फर्स्ट फेज था उसका खनन पूरा हो चुका है। सेकंड फेज की क्लियरेंस मिलने के बाद उसका काम अगर शुरू नहीं होगा या परसा कोल ब्लॉक शुरू नहीं होगा। 4 हजार 340 मेगावाट का जेनरेशन करने के लिए कोयल उपलब्ध नहीं होगा तो राजस्थान के लिए गंभीर विद्युत संकट पैदा करेगा।

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राजस्थान विद्युत बोर्ड के एमडी क्यों आए सरगुजा ? एमडी शिसभ शर्मा ने आगे बताया कि समस्या का जल्द समाधान करने के सिलसिले में निवेदन करने सरगुजा आए हुए हैं। आज सरगुजा कलेक्टर संजीव झा और एसपी भावना गुप्ता से मुलाकात की। इसके बाद सूरजपुर कलेक्टर और एसपी से मुलाकात करेंगे। मंगलवार को छत्तीसगढ़ के चीफ सेक्रेटरी से भी मुलाकात होगी। अधिकारियों के सामने समस्या को रखेंगे। उन्होंने बताया कि अगर 7 जून तक ये खदानें शुरू नहीं हुईं तो राजस्थान में बहुत बड़ा विद्युत संकट पैदा हो जाएगा। कोल माइंस के फर्स्ट फेज का खनन पूरा हो चुका है।

कोल प्रभावित क्षेत्र के लोग खदान का कर रहे विरोध :
4 हजार 340 मेगावाट का विद्युत उत्पादन करने के लिए कोयला उपलब्ध नहीं होगा तो राजस्थान को गंभीर विद्युत संकट से गुजरना होगा। गौरतलब है कि वर्तमान में सरगुजा से लेकर दिल्ली तक के नारे लग रहे हैं। कोल प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीण खदान खोलने नहीं देना चाहते। इसलिए लगातार परसा कोल ब्लॉक का विरोध कर रहे हैं। एमडी शिसभ शर्मा का कहना है कि विरोध का कोई जस्टिफाई कारण नहीं है।

आज कहते हैं कि जंगल काट रहे हैं। बांध बनाते वक्त कितने लोग विस्थापित होते हैं। कितना एरिया जलमग्न होता है। लेकिन कृषि के लिए जल दे सकेंगे, बिजली उत्पादन कर सकेंगे। कई हाईवे बनाए गए, कितने पेड़ कटे। उस पर कोई प्रश्न नहीं उठा। हसदेव अरण्य वन की बात करें तो कुल दो लाख हेक्टेयर का एरिया है. इसमें दो हजार ही दिया गया है।