पटना हाईकोर्ट ने बिहार नगरपालिका एक्ट में संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल तथा न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने वार्ड पार्षद डॉ. आशीष कुमार सिन्हा की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्य सरकार से जवाब-तलब किया। कोर्ट ने कहा है कि यदि एक सप्ताह में जवाब दायर नहीं किया जाता है, तो कोर्ट बिहार नगरपालिका एक्ट, 2007 में किये गए संशोधन पर रोक लगा सकती है।
अब इस मामले पर अगली सुनवाई 28 फरवरी 2022 को होगी। एक्ट 2007 के चैप्टर 5 व 31 मार्च 2021 को राज्य सरकार द्वारा किए गए संशोधन की वैधता को चुनौती दी गई है। ये मामला नगरपालिका में संवर्ग की स्वायत्तता से जुड़ा हुआ है। अधिवक्ता मयूरी ने कोर्ट के समक्ष बहस करते हुए कहा कि इस संशोधन के तहत नियुक्ति और तबादला को सशक्त स्थाई समिति में निहित अधिकार को ले लिया है। यह अधिकार अब राज्य सरकार में निहित हो गया है।
कोर्ट को बताया था कि अन्य सभी राज्यों में नगर निगम के कर्मियों की नियुक्ति नियमानुसार निगम द्वारा ही की जाती है। उनका कहना था कि नगर निगम एक स्वायत्त निकाय है, इसलिए इसे दैनिक क्रियाकलापों में स्वयं काम करने देना चाहिए। याचिकाकर्ताओं की अधिवक्ता मयूरी ने यह भी बताया कि जहां एक ओर निगम के कर्मियों पर राज्य सरकार का नियंत्रण है। वहीं, दूसरी ओर वेतन समेत अन्य लाभ निगम के कर्मियों को निगम के फंड से दिए जाते हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि निगम के कर्मियों के कैडर का केंद्रीकरण, 74वें संशोधन और नगर निगम के स्वायत्तता के भावना के विपरीत है। कोर्ट को आगे यह भी बताया गया कि चेप्टर 5 में दिए गए प्रावधान के मुताबिक निगम में ए और बी केटेगरी में नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकार को है, जबकि सी और डी केटेगरी में नियुक्ति के मामले में निगम को बहुत थोड़ा सा नियंत्रण दिया गया है। 31 मार्च को किये गए संशोधन से सी और डी केटेगरी के मामले में भी निगम के ये सीमित अधिकार को भी मनमाने ढंग से ले लिये गए हैं।
Source-hindustan