शिक्षकों को शराब माफियाओं से लड़ने के लिए नहीं कहा गया है..! मंत्री जी का अजीब जवाब।

शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने शिक्षकों को शराब पीने वाले तथा शराब माफिया की सूचना देने को लेकर जिलों को विभाग द्वारा भेजे गये ताजा पत्र पर स्थिति स्पष्ट की। शनिवार को एनडीए के साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस के अंत में पत्रकारों से कहा कि शिक्षकों को शराब माफियाओं से लड़ने के लिए नहीं कहा गया है। राज्य सरकार ने तो पहले ही सभी नागरिकों से अपील की थी कि कहीं कोई शराब पीते या कारोबार करते दिखे तो उसकी सूचना दें। शिक्षक नागरिक से बाहर हैं क्या? फिर अगर शिक्षा विभाग ने अपने कर्मियों, शिक्षकों से यह अपील की तो इसमें अव्यवहारिक क्या है?

श्री चौधरी ने कहा कि इसको लेकर कुछ लोगों द्वारा भ्रम पैदा किया जा रहा है। शिक्षकों को कोई टारगेट नहीं दिया गया है। कोई बाध्यकारी तो है नहीं। कोई दिखे तो सूचना दीजिए, नहीं दिखेगा तो नहीं देंगे। विभाग ने फिक्स नहीं किया है कि सप्ताह में शराब से जुड़ी इतनी सूचना देनी है। बस कहा गया है कि ऐसी कोई जानकारी मिले तो सूचित करें।

शिक्षक इसे मात्र अपील समझें, अतिरिक्त कार्य नहीं : संजय

उधर, शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय कुमार ने भी शुक्रवार को जिलों को इस बाबत भेजे गये पत्र को लेकर पक्ष रखा। कहा कि शिक्षकों को अतिरिक्त कार्य नहीं दिया गया है। यह हर जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य बनता है, इसलिए शिक्षक इसे मात्र अपील समझें। इसमें कोई आदेश नहीं है। उन्होंने कहा कि विभाग का मानना है कि सबसे प्रबुद्ध वर्ग शिक्षकों का है। बच्चों के चरित्र निर्माण करने में सबसे बड़ी भूमिका उनकी है। नशा को लेकर भी जागरूकता अभियान चलाना जरूरी है। राज्य में शराबबंदी लागू है। मुख्यमंत्री की ओर से इसको लेकर समाज सुधार अभियान भी चलाया गया। विभाग की ओर से सभी डीईओ को पत्र जारी किया गया है। इसका मतलब है कि शिक्षक भी लोगों को जागरूक करें। पत्र में संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है। कहा कि हमारे सभी शिक्षक सुरक्षित रहें, हम भी यही चाहेंगे। शिक्षक स्थानीय समाज में ही रहते हैं। समाज में उनकी हैसियत है, इसी उद्देश्य से उनसे अपील की गई है।

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शिक्षकों के साथ मजाक कर रही सरकार : राठौड़

पटना। प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग के चेयरमैन राजेश राठौड़ ने आरोप लगाया है कि सरकार शिक्षकों के साथ मजाक कर रही है। शराबबंदी को सफल बनाने में शिक्षकों द्वारा शराब माफियाओं और धंधेबाजों को ढूंढ़ने से संबंधित आदेश हास्यास्पद है। इस तरह के फैसला लेने के पहले सरकार को सामाजिक ज्ञान होना चाहिए। तीस प्रतिशत से ज्यादा शिक्षिकाएं विभाग में हैं। क्या वे शराब माफियाओं से उलझेंगी? सवाल पूछा कि ऐसे में जब पुलिस और उत्पाद विभाग शराब माफियाओं से निपट ही नहीं पा रही है तो बिना संसाधन के शिक्षकों को उनसे निपटने के लिए सरकार क्यों योजना बना रही है।