कतरनी चावल और चूड़ा : विदेशों में भी बढ़ी मांग, जीआइ टैग, स्‍वाद और सुगंध अद्भुत, आप भी भागलपुर आकर खरीदें

भागलपुर :-  कतरनी चावल और चूड़े की खुशबू देश ही नहीं विदेशों तक पहुंच गई है। यही कारण है कि इस साल अधिकाधिक किसान कतरनी धान लगाने को उत्सुक हैं। 2015-16 में 968.77 एकड़ में ही इसकी पैदावार होती थी। पिछले साल भागलपुर, बांका व मुंगेर जिले में 17 सौ हेक्टेयर में इसकी उन्नत किस्म की खेती की गई थी।

25 से 26 हजार क्विंटल धान की उपज हुई थी। इस साल इसका रकवा बढ़ाकर दो हजार से 25 सौ हेक्टेयर करने की तैयारी चल रही है। किसान अभी से कतरनी चावल व चूड़ा विदेश भेजने को लेकर समूह बनाकर एपिडा से रजिस्ट्रेशन कराने की तैयारी में जुट गए हैं। आसपास के क्षेत्रों में कतरनी धान से चूड़ा व चावल तैयार करने के लिए 20-22 नई मिलें खुल जाने से इस क्षेत्र में रोजगार के स्रोत भी बढ़ रहे हैं। प्रसिद्ध है।

भागलपुर, बांका और मुंगेर जिले में इसकी धान की खेती होती है। इसकी मांग देश ही नहीं विदेशों में भी होने लगी है। पांच सितारा होटलों, शाही शादियों आदि से भी इसकी फरमाइश आती है। कतरनी चावल के बिना यहां का कोई धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठान पूरा नहीं होता है। भागलपुर कतरनी की खास खुशबू व मौलिकता को देखते ही भारत सरकार ने 2017 में इसे भौगौलिक सूचकांक जीआइ टैग प्रदान किया था। केवाल मिट्टी में इसकी खेती करने से पैदावार में अधिक खुशबू देखी जाती है।

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जीआइ टैग मिलने के बाद कृषि विभाग और आत्मा किसानों को इसकी खेती करने के लिए उत्साहित कर रही है। 2020-21 में कतरनी धान की खेती 14 सौ एकड़ में की गई थी। 2021-22 में रकवा बढ़कर 17 सौ हेक्टेयर हो गई। इस साल 25 सौ हेक्टेयर में इसकी खेती करने की तैयारी उसी प्रोत्साहन का नतीजा है।

कतरनी चावल व चूड़ा की तेज हुई ब्रांडिंग :- सुल्तानगंज प्रखंड के आभा रतनपुर के किसान मनीष कुमार सिंह परम आनंद नाम से कंपनी बनाकर करतनी चावल और चूड़े की बिक्री कर रहे हैं। उनके द्वारा तैयार कतरनी चावल और चूड़ा सौगात के रूप में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित अन्य महानुभावों को भेजा गया था।

पांच क्विंटल चावल और चूड़ा बिहार भवन भेजा गया था। बिहार दिवस के मौके पर लगाई गई प्रदर्शनी में परम आनंद के भागलपुरी कतरनी को सेकेंड प्राइज मिला था। महाराष्ट्र के फलटन में स्वराज फाउंडेशन द्वारा कतरनी चावल और चूड़े की मांग को देखकर किसान उत्सुक हैं। उसे वे बड़े अवसर के रूप में देख रहे हैं।

55 से 60 रुपये किलो बिका धान :- कतरनी धान की खेती करने वाले किसानों को पहले प्रति किलो दर 30 से 35 रुपये ही मिल पाती थी। इस साल इसकी कीमत बढ़कर 55 से 60 रुपये हो गई है। यही कारण है कि किसान फिर से कतरनी धान की खेती करने की ओर बढ़ रहे हैं। कतरनी धान को बढ़ावा देने के लिए नावार्ड ने गोराडीह प्रखंड में किसान उत्पादक कंपनी बनाई है। वहां से किसानों के समूह को वित्तीय सहायता के साथ-साथ बाजार भी उपलब्ध कराया जाएगा।

उपज कम और मांग ज्यादा :- कतरनी धान की उपज कम होती है। लेकिन अब देश ही नहीं विदेशों में भी इसकी मांग बढऩे से किसान इसकी खेती में रुचि दिखा रहे हैं। एक बीघा में इसकी पैदावार करीब 13 से 15 क्विंटल तक होती है। यह सुपाच्य होता है। गुणों से भरपूर होने के कारण इसकी कीमत अन्य चावलों की तुलना में अधिक होती है। भागलपुरी कतरनी धान उत्पादक संघ को जीआइ टैगिंग मिली है। इसकी कीमत भी संघ की ओर से तय की जाती है।

कतरनी धान को बढ़ावा देने के लिए कतरनी धान उत्पादक संघ का गठन किया गया है। संघ को जीआइ टैग मिल गया है। संघ को नावार्ड की ओर से मदद दिलाई जा रही है। भागलपुरी कतरनी का स्वाद ही अलग है। – प्रभात कुमार सिंह, उप परियोजना निदेशक आत्मा