राज्य के प्रारंभिक विद्यालयों की पहली से लेकर आठवीं तक की कक्षाओं में महज 63 फीसदी बच्चे स्कूल आ रहे हैं। पहली से आठवीं कक्षा में 37 फीसदी की बड़ी संख्या ऐसे विद्यार्थियों की है, जो स्कूल रोज नहीं आते। उन्हें मध्याह्न भोजन योजना (अब पीएम पोषण योजना) भी स्कूल में आने और पढ़ाई करने के साथ-साथ गर्मागर्म भोजन पाने को प्रेरित नहीं कर पा रही है। यह बड़ी सच्चाई सरकार के एमआईएस के आंकड़े ही बयान कर रही है। 10 जनवरी 2022 के आधार पर एमआईएस के मुताबिक 63 फीसदी उपस्थिति के आधार पर ही शिक्षा विभाग ने एमडीएम का भोजन पकाने की राशि जारी की है।
विदित हो कि एमडीएम कितने फीसदी बच्चों के बीच बांटा गया, स्कूलों में उपस्थिति का सबसे भरोसेमंद आंकड़ा इसे ही माना जाता है। प्रारंभिक कक्षाओं में बात कुल नामांकन की करें तो एमआईएस के मुताबिक 10 जनवरी 2022 के आधार पर प्राथमिक (एक से पांच) कक्षाओं में 1.17 करोड़ 53580, जबकि मध्य (छह से आठ) विद्यालय में 61 लाख 79911 बच्चे कुल नामांकित हैं। अर्थात कुल नामांकन 179 लाख 33491 हैं, जबकि इनमें से 63 फीसदी अर्थात प्राथमिक में 74 लाख 4755 जबकि मध्य विद्यालय में 38,93334 छात्र-छात्रा ही उपस्थित हो रहे हैं। इन्हें जोड़ने पर आंकड़े करीब 113 करोड़ तक पहुंचते हैं और ये ही बच्चे एमडीएम खा रहे हैं।
बहरहाल, मध्याह्न भोजन योजना निदेशक सतीश चन्द्र झा ने सभी 38 जिलों को कुल नामांकन के 63 फीसदी (अधिकतम सीमा) यानी 113 लाख बच्चों को पोएम पोषण योजना का लाभ पहुंचाने के लिए परिवर्तन मूल्य के रूप में शुक्रवार को 186 करोड़ 28.5 लाख रुपए जारी कर दिए हैं। 28 फरवरी से करीब दो साल बाद बिहार में मध्याह्न भोजन योजना की शुरुआत हो रही है। इन विद्यार्थियों के लिए फरवरी के एक जबकि मार्च के 23 को मिलाकर कुल 24 दिन के एवज में राशि का वितरण हुआ है जिससे यह योजना निर्बाध संचालित हो सके।
आर्थिक सर्वेक्षण भी बता रहा उपस्थिति का यही हाल
हाल ही सरकार द्वारा विधानमंडल में पेश आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट भी एमडीएम के अधिकतम 70 फीसदी तक बंटने की ही तस्दीक कर रही है। इसके मुताबिक मध्याह्न भोजन का प्राथमिक में 2019-20 में आच्छादन 63.7, जबकि 2020-21 में 67.1 फीसदी रहा। वहीं इसी दौरान कक्षा 6 से 8 में एमडीएम का लाभ क्रमश: 59.7 और 70.7 फीसदी विद्यार्थियों को मिला।
Source-hindustan