जानें, बंगाल में BJP की हार की 5 मुख्‍य वजह, मोदी-शाह से लेकर मंत्रियों की फौज के बावजूद क्‍यों दो अंकों में सिमटी

बंगाल में तीसरी बार ममता बनर्जी की सरकार बन रही है। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी के अनुसार भाजपा दो अंकों में ही सिमट गई। ऐसे में सवाल है कि 200 से अधिक सीटें जीतने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय मंत्रियों के हैवीवेट चुनाव प्रचार और सत्ताधारी दल में बड़े स्तर पर सेंधमारी के बाद भी भाजपा से आखिर कहां पर चूक हुई जिसकी वजह से सत्ता से दूर रह गई।

इसकी पांच मुख्य वजह है। पहला ध्रुवीकरण की रणनीति फेल:

बंगाल विधानसभा चुनाव में इस बार ध्रुवीकरण को बड़े मुद्दे के रूप में देखा जा रहा है। चुनावी माहौल बनने के पहले से ही भाजपा लगातार ममता बनर्जी और तृणमूल पर तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही। भाजपा अपनी हर रैली और हर सभा में जय श्री राम के नारे पर हुए विवाद को मुद्दा बनाकर पेश करती रही। फिर तृणमूल भी इससे अछूती नहीं रही। ममता बनर्जी ने पहले सार्वजनिक मंच पर चंडी पाठ किया, फिर अपना गोत्र भी बताया और हरे कृष्ण हरे हरे का नारा दिया।

माना जा रहा था कि बंगाल के हिंदू वोटरों को रिझाने के लिए भाजपा का यह दांव उनके पक्ष में जा सकता है लेकिन आकलन उल्टा साबित हो गया। शीतलकूची फायरिंग और भाजपा नेताओं के बयान ने मुस्लिम वोट को एकजुट कर दिया। हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों के एक धड़े का यह भी मानना है कि बंगाल में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सिर्फ माहौल बनाया गया जबकि जमीनी पर राजनीतिक ध्रुवीकरण देखने को मिला। छिटपुट घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर चरण के मतदान वहां शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए हैं।

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दूसरा, मुख्यमंत्री चेहरे का ना होना:

यह सच है कि इस चुनाव में भाजपा काफी मजबूती के साथ तृणमूल कांग्रेस का सामना किया, लेकिन ममता के बराबर कोई नेता या मुख्यमंत्री के चेहरा न होना उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने भी कई बार इस पर चिंता जाहिर की। पार्टी ने पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ा।

तीसरा, बाहरी नेताओं पर अधिक भरोसा:

लोकसभा चुनाव में 19 सीटें जीतने के बाद भाजपा के लिए बंगाल विधानसभा चुनाव सबसे बड़ी लड़ाई थी जिसके लिए उसे प्रदेश के जमीनी और बड़े चेहरे चाहिए थे। इसके लिए भाजपा ने दूसरे दलों खासकर तृणमूल में सेंधमारी शुरू की और सत्ताधारी दल के कई बड़े नेताओं को अपने पाले में मिला लिया। इनमें सबसे बड़ा नाम सुवेंदु अधिकारी का माना जाता है जो ममता बनर्जी के करीबी सहयोगी रहे और उन्हेंं बंगाल की सत्ता दिलाने में बड़ा योगदान दिया था।

भाजपा जहां बार-बार कहती रही कि दो मई तक तृणमूल पूरी साफ हो जाएगी, वहीं दूसरी ओर ममता ने भाजपा पर खरीद-फरोख्त का आरोप लगाते हुए इन नेताओं को दल-बदलू, धोखेबाज और मीरजाफर तक की संज्ञा दे दी। ममता बनर्जी ने इसे इस तरह से प्रोजेक्ट किया कि उनके अपनों ने ही उन्हेंं धोखा दिया क्योंकि वे खुद बेईमान थे। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ममता के इस दांव से उन्हेंं फायदा मिला।

चार, अपनों की नाराजगी मोल ली:

विधानसभा चुनाव से पहले बंगाल में जमीनी आधार बनाने के लिए भाजपा ने दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी शामिल कराया और उन्हेंं बड़े पैमाने पर टिकट दिए। हालांकि इसके चलते पार्टी ने अपने नेताओं की नाराजगी मोल ले ली। टिकट बंटवारे के दौरान बंगाल भाजपा यूनिट में असंतोष की खबरें आईं और कई जगह भाजपा के दफ्तर में तोडफ़ोड़ भी हुई। इससे विवश होकर भाजपा को कई बार संशोधन भी करना पड़ा। हालांकि अपनों के बजाय बाहरी नेताओं पर अधिक भरोसा पार्टी की अंदरूनी खटपट की बड़ी वजह बना।

पांचवां, मौन मतदाताओं का नहीं मिला साथ:

चुनाव नतीजे यह बताने को काफी है कि भाजपा को उनके मौन वोटरों ने वोट नहीं दिया। दरअसल बिहार चुनाव के बाद पीएम मोदी ने देश की महिलाओं को भाजपा का साइलेंट वोटर बताते हुए उन्हेंं विशेष रूप से धन्यवाद दिया लेकिन बंगाल में भाजपा का यह वोटबैंक खिसकता नजर आया। इसकी वजह यह भी मानी जा रही है कि पीएम मोदी का ममता बनर्जी पर अटैक करते हुए बार-बार दीदी ओ दीदी कहकर संबोधित करना महिलाओं को रास नहीं आया। क्योंकि तृणमूल ने इसे मुद्दा बनाया।

source, Dainik Jagran