तीन महीने से हो रही रिकार्ड बारिश व बाढ़ ने सांपों को बेहाल कर दिया है। इनके बिल व मांद पानी में डूब गए हैं। नतीजतन रसल्स वाइपर, स्पेक्टिल कोबरा, कॉमन करैत प्रजातियों के विषैले सांप आहार व आशियाने के लिए गांवों व बस्तियों की ओर रुख कर रहे हैं। इन दिनों गोपालगंज से लेकर पश्चिमी चंपारण व पूर्वी चंपारण के इलाके तक में सांपों की चहलकदमी बढ़ गई है। एक दिन पहले ही शहर से सटे बसडीला में दस फुट का अजगर भी मिला था। केवल गोपालगंज जिले में पंद्रह दिनों में 7 लोगों की मौत सांप के डंसने से हो चुकी है। जबकि इस अवधि में सर्पदंश की चपेट में आए साठ से अधिक लोगों का अस्पतालों में इलाज किया गया है। उत्तर बिहार में पायी जाने वाली सांप की ये तीनों प्रजातियां जहरीले सांप के लिहाज से बिग फॉर ग्रुप में शामिल हैं। जबकि एक अन्य सास्केल वाइपर सूबे के गया जिले व इसके आस-पास के इलाके में पाए जाते हैं।
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वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ के मुताबिक बिग फॉर ग्रुप में शामिल सांप खुद अपना बिल नहीं बनाते। ये चूहे, खरगोश, सियार के बिल या मांद में बसेरा करते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र में सांप को प्राकृतिक चूहा नियंत्रण के रूप में जाना जाता है। लेकिन, बारिश व बाढ़ का बिल में घुस जाने के बाद ये बाहर निकल रहे हैं। बड़ी संख्या में बाढ़ के पानी में बह कर दूर-दूर तक पहुंच जा रहे हैं। जहां इनके लिए चूहे, पक्षी, मेढ़क आदि आहार के लिए उपलब्ध होते हैं। प्राकृतिक रूप से सांप तैरना भी अच्छी तरह से जानते हैं। बरसात के चार महीने में ही सांप प्रजनन भी करते हैं। ऐसे में इन्हें अनुकूल ठिकाने की तलाश होती है। ये ऊंची जगह या इंसान के घरों में शरण लेते हैं।
सांपों के पलायन के तीन कारण
1- रूक-रूक कर हो रही लगातार भारी बारिश
2- चंवर,खेत व जंगल इलाके में हुए जलजमाव
3- धूप से पानी के गर्म हो जाने से बन रही उष्णता
सर्पदंश से बचाव के लिए ये करें
1- सर्पदंश से बचाव के लिए ये करें
2- जलजमाव व बाढ़ के इलाके में दरवाजे रखें बंद
3- चंवरों व खेतों में पूरी सतर्कता के साथ जाएं
4- रात को बिना टार्च या रोशनी के अंधेरे में नहीं निकले
5- घरों व आसपास के इलाके के बिल व सुराखों को बंद कर दें
बारिश व बरसात के मौसम में सांप सुरक्षित स्थानों व आहार व आशियाना व प्रजनन के लिहाज से शरण लेते हैं। चूंकि ये कोल्ड ब्लडेड जीव होते हैं। ऐसे में इन्हें खाना पचाने व शरीर के मेटाबॉलिज्म बढ़ाने के लिए नमी से बाहर निकलना पड़ता है। – अभिषेक, प्रोजेक्ट मैनेजर, नेचर इन्वायरमेंट वाइल्ड लाइफ सोसाइटी
Source-hindustan