मुजफ्फरपुर। ‘बमभोले बाबा कहां रंगेलय पगडिय़ा। फागुन मास भोला गेला ससुररिया, ओहि में रंगा गेल चुनरिया, बम भोले बाबा…Ó। ‘रामजी के हाथ कनक पिचकारी, सियाजी के हाथ अबीर के झोली…Ó, ‘मिथिला में राम खेलैथ होली…। मिथिला की होली में इन लोक गीतों का बड़ा महत्व है।
इसमें भगवान शिव के साथ हंसी-मजाक के भाव हैं तो प्रभु श्रीराम और माता जानकी से जुड़ा होली प्रसंग भी। होली पर गाए जाने वाले फाग में जहां मानव, प्रकृति और विज्ञान का वर्णन है, वहीं भक्ति और मर्यादा के रंग भी हैं।
मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, शिवहर में चैता खूब गाए जाते हैं। इसमें रामनवमी की धमक स्पष्ट महसूस होती है। ‘अयोध्या में राम के जनमुआ हो रामा चैत रे मास।
केउ लुटावे अन्न धन सोनमा, केउ लुटावे हाथ कंगना हो रामा चैत रे मास…Ó जैसे चैता मिथिला की लोक संस्कृति से रूबरू कराते हैं। ‘मिथिला के माटी चननमा हो रामा, अहिल्या अंगनवा…Ó में प्रभु श्रीराम के मिथिला आगमन, अहिल्या उद्धार का वर्णन है।
फाग में ब्रज की होली : कृष्णावतार में ब्रजभूमि पर खेली गई होली तो विश्व प्रसिद्ध है। ब्रज की होली की झलक भी इन लोक गीतों में है। ‘आजु बिरज में होली रे रसिया, होरी रे रसिया, बडज़ोरी रे रसिया…।
होली पर जोगीरा गीतों का भी अलग महत्व है। जैसे भूल गए, भूल गए भूलन भैया, कलकत्ते में बसती है काली मैया। जोगीरा सा-रा-रा-राÓ, ‘जहीं तहीं फगुआ में लागत छय भीड़, गामे-गामे सभठाम उडय़ छय अबीर, जोगीरा सा-रा-रा-राÓ, गीत सुनकर लोग आज भी झूम उठते हैं।
समस्तीपुर के रोसड़ा निवासी मैथिली साहित्यकार परमानंद मिश्र कहते हैं कि वसंत के आगमन पर प्रकृति में उल्लास होता है। किसानों के घर नया अनाज आता है। इस सबसे मानव जीवन में जो उमंग के भाव उमड़ते हैं, इन गीतों में उसी की झलक मिलती है।
इनमें मस्ती है तो होली की खुमारी भी है। ‘रसिया रस लूटो होली में, राम रंग पिचुकारी, भरो सुरति की झोली में…मन को रंग लो रंग रंगीले कोई चित चंचल चोली में, होरी के ई धूमि मची है, सिहरो भक्तन की टोली में…।