महाराज कृष्णदेव राय ने एक बार तेनालीरामन से पूछा-हमारे राज्य में कुल कितने कौवे हैं। तेनालीरामन से झट से कह दिया-पांच हजार। महाराज ने पूछा, इससे कम या अधिक हुए तो! जवाब आया-कम हुए तो कुछ कौवे या तो रिश्तेदारी में गए होंगे और अधिक हुआ तो कुछ कौवों के रिश्तेदार हमारे राज्य में आ गए होंगे।
जानना बड़ा रोचक है कि पक्षियों की गणना कैसे की जाती है। हर साल एशिया में पक्षियों की गिनती एक से 15 जनवरी तक की जाती है। यह काम 50 वर्षों से भी अधिक समय से हो रहा है।
वेटलेंड इंटरनेशनल नामक संस्था का अहम अंग एडब्ल्यूसी (एशियन वाटरबर्ड काउंट) इस काम को करता है। एडब्ल्यूसी के राज्य समन्वयक अरविंद मिश्रा से इस बार हो रही पक्षियों की गणना के बारे में बात की गई। उन्होंने बताया कि पक्षियों की गणना में खासतौर पर जल पक्षियों की गणना की जाती है। जल में रहने वाले शीतकालीन व प्रवासी पक्षी दोनों इस समय मौजूद रहते हैं। जनवरी में गणना करने का मुख्य कारण यह है कि इस दौरान ठंड चरम पर रहती है और प्रवासी पक्षियों का आगमन होता है।
इस कारण बेहतर आंकड़ा सामने आ जाता है। खास बात यह है कि यह गणना पूरे एशिया में एक ही समय, यानी जनवरी के 15 दिनों में की जाती है। जहां कहीं भी जलाशय होते हैं, वहां एडब्ल्यूसी की टीम अपना काम करती है। उन जगहों को प्राथमिकता दी जाती है, जहां पूर्व में पक्षियों की गणना हो चुकी है। जितनी संभव हो पाए, उतनी अधिक गणना की कोशिश की जाती है। पांच जलाशयों के पिछले 10 साल के आंकड़ों को मिलाकर किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है कि अमुक पक्षी की संख्या बढ़ या घट रही है।
अभी जमुई के नागी-नकटी पक्षी आश्रयणी, काली पहाड़ी, गरही समेत छह जगहों का एडब्ल्यूसी की टीम ने मुआयना किया है। इसके बाद कांवर झील, कुशेश्वरस्थान आदि जगहों का मुआयना किया जाएगा।
खास बात यह रही कि इस बार जमुई के गरही में ह्वाइट कैप्ड वाटर रेडस्टार्ट को देखा गया। यह पक्षी अब तक हिमालयी क्षेत्र में ही दिखता रहा है और वहीं प्रजनन भी करता है। इस इलाके में सलेटी खंजन पक्षी भी इस बार दिखे हैं। यह पर्यावरण के लिए सुखद संकेत है।