बिहार में चकबंदी को लेकर बड़ी खबर है। चकबंदी के जरिए एक परिवार के अलग-अलग भूखंडों के बदले उन्हें एक बड़ा प्लाट उपलब्ध करा दिया जाता है।
दरअसल, परिवार बढ़ने और बंटवारे के बाद खेती के लिए उपलब्ध भूखंड का रकबा घटता जा रहा है। खेती के लिए छोटे-छाेटे भूखंड होने से लागत बढ़ती है और उपज घटती है। बिहार में अब भूमि सर्वेक्षण के बाद ही चकबंदी के लिए अभियान चलेगा। इस समय पुराने शाहाबाद और उत्तर बिहार में गोपालगंज जिला के कुछ अंचल चकबंदी के लिए अधिसूचित हैं।
चकबंदी में लगे कर्मियों को अब सर्वे में लगाया जा रहा
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग धीरे-धीरे इन अंचलों से चकबंदी में लगे कर्मियों को हटा रहा है। उन्हें सर्वे में लगाया जा रहा है। पांच दिन पहले गोपालगंज के एक अंचल को चकबंदी से मुक्त करने का आदेश जारी किया गया था।
सोमवार को ऐसा ही आदेश गया जिला के आमस अंचल के लिए जारी हुआ। राजस्व विभाग के इन आदेशों से संबंधित अंचल के रैयतों को राहत मिल रही है।
1956 में बना चकबंदी अधिनियम, अब तक पूरी नहीं हुई योजना
बिहार में चकबंदी के लिए 1956 में ही अधिनियम बना था, लेकिन आज तक पूरे राज्य की चकबंदी नहीं हो पाई। कुछ जिलों में यह शुरू भी हुई तो देरी के चलते रैयतों की परेशानी बढ़ गई, क्योंकि चकबंदी के लिए अधिसूचित क्षेत्र में जमीन की खरीद-बिक्री और आपसी बंटवारा पर भी रोक लग जाती है।
रैयतों की मांग थी कि सरकार समय सीमा के भीतर चकबंदी कराए या इसे स्थगित कर दे। सोमवार को गया जिला के आमस अंचल के लिए स्थगन आदेश जारी किया गया। इस अंचल के अधिसूचित 10 गांवों में चकबंदी की प्रक्रिया स्थगित कर दी गई है। ये गांव हैं : सिमरी, बनकट, करमाइन, अलहुआचक, अकौना, हमजापुर, झरी, मझौलिया (दो मौजा) और लेंबुआ।