गंगा, सरयू और सोन के संगम पर देवी सरस्‍वती ने की थी स्‍थापना, संगमेश्‍वरनाथ का मानस में भी जिक्र

बड़हरा (भोजपुर), संवाद सूत्र। Mahashivratri 2022 Special: भोजपुर जिला मुख्यालय यानी आरा शहर से करीब 32 कि.मी. उत्तर पूर्व में अवस्थित गंगा, सरयू और सोन नद के समागम स्थल पर अवस्थित संगमेश्वर नाथ मंदिर का धार्मिक और पौराणिक महत्व है। इस स्थल का वर्णन गोस्वामी तुलसी दास जी ने श्री रामचरित्र मानस में किया है। हालांकि, भौगोलिक परिस्थितियां बदलने के कारण सरयू मुख्य स्थान से 10 से 15 कि.मी. हटकर पश्चिम में ही रिविलगंज के पास गंगा में समाहित होने लगीं। हालांकि, सोन का समागम गंगा से अभी भी यहीं पर होता है।

संगमेश्‍वरनाथ के दर्शन से पापों से मिलती है मुक्ति:-लोकआस्था के अनुसार भगवान संगमेश्वरनाथ के ज्योर्तिलिंग का दर्शन करने से मनुष्ण सभी पापों से मुक्त हो जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार  संगमेश्वरनाथ मंदिर में ज्योर्तिलिंग को माता सरस्वती ने स्थापित किया था। मान्यता है कि ब्रह्मलोक में एक सभा का आयोजन किया गया था। जहां पर ऋषि, मुनि व देवगण बारी- बारी से धार्मिक गाथाओं का गान कर रहे थे। उसी बीच अति उत्साह में आकर ऋषी मन्दपाल अपना स्वर भंग कर बैठे। इससे महर्षि दुर्वाशा क्रोधित हो गए। सारी घटना को माता सरस्वती ब्राम्हा जी के बगल में बैठकर देख रही थीं।

देवी सरस्‍वती ने की थी शिवलिंग की स्‍थापना :- इसे देख कर दुर्वाषा ऋषि ने माता सरस्वती को श्राप दिया कि मृत्युलोक में जाकर आप जीवन व्यतीत करें, आप श्रापमुक्त हो सकती हैं। श्रापमुक्ति के लिए माता सरस्वती ने पृथ्वीलोक को प्रस्थान किया, तब वह सर्वप्रथम इसी समागम स्थल पर पहुंचीं और यहां का मनोरम दृश्य देख बालू से ज्योर्तिंलिंग बनाकर पूजा-अर्चना की। माता सरस्वती द्वारा बालू से ज्योर्तिलिंग का निर्माण कर पूजा करने का उल्लेख वाणभट्ट रचित ‘हर्षचरित्र’ में भी किया गया है। मंदिर के महंत संत योगानंद जी महाराज कहते हैं, कि नागपंचमी के दिन काल संर्प योग की पूजा करने के लिए दूर- दूर से लोग यहां आते हैं।

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