सहरसा। कोसी क्षेत्र में हर वर्ष बसना और उजड़ना लोगों की नियति बन चुकी है। आजादी के बाद से बाढ़ की समस्या का निदान सभी राजनीतिक दलों का मुख्य चुनावी मुद्दा रहा, लेकिन इस दिशा में कभी ठोस पहल नहीं हुई। फलस्वरूप हर वर्ष आनेवाली बाढ़ इस इलाके को करोड़ों की क्षति हो जाती है। बाढ़ हर वर्ष इस इलाके को भौगोलिक, सामाजिक व आर्थिक रूप से काफी क्षति देता रहा है। बाढ़ के समय फसल क्षतिपूर्ति, बाढ़ सहायता राशि के नाम पर करोड़ों खर्च भी होते हैं, परंतु लोगों की पीड़ा कम नहीं होती। बाढ़ से पूर्व तो इसपर सालों भर चर्चा होती है, लेकिन बाढ़ आते ही यह चर्चा राहत सामग्री सत्तु, मोमबत्ती व माचिस की गुणवत्ता पर जाकर टिक जाती है।
हर वर्ष एक कदम पीछे चले जाते हैं बाढ़ पीड़ित
जिले के महिषी, नवहट्टा, सिमरी बख्तियारपुर, सलखुआ और बनमा इटहरी में लगभग तीन से चार लाख तक की आबादी बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होती है। इनलोगों के बीच बाढ़ सहायता मद में बर्तन व कपडे़ की खरीद के लिए छह हजार बाढ़ सहायता राशि की दर से गत वर्ष इन प्रखंडों में लगभग 30 करोड़ रुपये का वितरण किया गया। इसके अलावा 12 करोड़ रुपये फसल क्षतिपूर्ति मद में खर्च किए गए। कमोवेश इतनी ही राशि हर वर्ष बाढ़ पीड़ितों की सहायता और पांच से दस करोड़ तटबंध सुरक्षा, नाविकों का भुगतान, सामुदायिक किचेन, जीआर वितरण आदि पर खर्च होता है। बावजूद इसके बाढ़ पीड़ितों की जो क्षति होती है, उसकी आधी भी भरपाई नहीं हो पाती। वे हर वर्ष एक कदम आगे जाते हैं, तो बाढ़ उन्हें दो कदम पीछे खींच लाता है।
इस वर्ष लगभग डेढ़ लाख लोग हैं बाढ़ से प्रभावित
जिला प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान समय में चार प्रखंडों के 27 पंचायत और 49 गांव के एक लाख 38 हजार 13 व्यक्ति और 300 पशु बाढ़ से पूरी तरह प्रभावित है। 35 झोपड़ी ध्वस्त हो गए। 2571 पालिथीन शीट का वितरण किया गया है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में तीन सरकारी और 61 निजी नाव चलाए जा रहे हैं, परंतु सहरसा को अबतक बाढ़ पीड़ित जिला में शामिल नहीं किया जा सका है। ऐसे में लोगों को क्षतिपूर्ति का लाभ मिलना कठिन हो जाएगा।
कोट
बाढ़ के संबंध में जिला प्रशासन द्वारा नियमित रिपोर्ट भेजा जा रही है। सरकार के निर्देशानुसार क्षति पूर्ति का भुगतान होगा अन्य निर्णय सरकार के स्तर से ही लिया जा सकता है।
नीरज सिंहा, जिला आपदा प्रबंधन पदाधिकारी, सहरसा