पहले गांवों के लोग ही तय कर देते थे प्रत्याशी

मुंगेर । पंचायत चुनाव की डुगडुगी बजते ही उम्मीदवार वोटरों को अपने-अपने तरीके से रिझाने में लग गए हैं। ग्रामीण इलाके के लिए आने वाला हर चुनाव एक त्योहार की तरह होता है। हर बार चुनाव में ग्रामीण इलाके के मतदाताओं की सबसे ज्यादा भागीदारी होती है। कई बुजुर्ग बताते हैं कि पहले के चुनाव से लेकर अब के चुनाव में काफी अंतर आ गया है। पहले के उम्मीदवार लोगों से मेल मिलाप रखते थे। उनकी समस्याएं सुनते थे और क्षेत्र की समस्याओं को दूर करने के लिए चुनाव लड़ते थे। शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त धरहरा प्रखंड के घटवारी निवासी चंद्रदेव रजक (94) बताते हैं कि छठे दशक में पंचायती राज व्यवस्था में मुखिया के चुनाव के लिए अपना पहला वोट दिया था। तब पंचायत चुनाव में आज की तरह धन बल का भी प्रयोग नहीं होता था। गांव व पंचायत के लोग सर्व सम्मति से इलाके के प्रतिष्ठित व्यक्ति को मुखिया में खड़ा करा देते थे। पहले गांवों के विकास के लिए इतना फंड नहीं हुआ करता था । प्रत्याशी पैदल दरवाजे -दरवाजे जाकर प्रचार करते थे। आज सबकुछ उससे अलग हो गया है।

अब अपना विकास होता, क्षेत्र का नहीं

क्षेत्र के विकास में कोई दिलचस्पी नहीं रखने वाले प्रत्याशी चुनाव के समय नामांकन से लेकर प्रचार तक लाखों रुपये फूंक देते हैं। चुनाव जीतने के बाद पांच साल फिर उसी खर्च की भरपाई की जुगत में लगे रहते हैं। इस वजह से प्रत्याशियों का अपना विकास तो हो जाता है। लेकिन क्षेत्र का विकास ज्यों का त्यों रह जाता है। इस वजह से अब उम्मीदवारों में सेवाभाव नहीं दिखता और न ही चुनाव में बुनियादी समस्याओं के समाधान को लेकर कोई एजेंडा रहता है।

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