जेब पर पड़ेगा बोझ: जमीन की रजिस्ट्री कराने में ना करें देर, अप्रैल से बढ़ सकता है एमवीआर

अगर आपको जमीन की रजिस्ट्री करानी है तो देरी न करें। जितनी जल्दी हो सके जमीन का निबंधन करा लें। जमीन का एमवीआर यानी मिनिमम वैल्यू रेट जल्द बढ़ सकता है। ऐसे में जमीन रजिस्ट्री के लिए ज्यादा पैसा चुकाना होगा। राज्य सरकार अप्रैल में एमवीआर बढ़ाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए जिलों की राय ली जा रही है।

राज्य सरकार का निबंधन विभाग इसके लिए होमवर्क में जुटा है। राज्य सरकार से हरी झंडी मिलते ही जिलों के स्तर पर एमवीआर बढ़ाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। उसके बाद बढ़ी हुई दरों के आधार पर लोगों को निबंधन शुल्क देना होगा। पिछली बार वर्ष 2016 में यानी छह साल पहले एमवीआर बढ़ा था। अलग-अलग जिलों में इसकी दर 10 से 40 फीसदी तक बढ़ाई गई थी।

जमीन के बाजार मूल्य से तय होता है एमवीआर==एमवीआर यानी मिनिमम वैल्यू रेट वह दर होती है जिसे सरकार किसी जमीन का न्यूनतम मूल्य मानती है। किसी खास इलाके में खास तरीके की जमीन की हो रही खरीद-बिक्री में जो औसत बाजार मूल्य पाया जाता है, उसी के आस-पास एमवीआर तय किया जाता है।

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संबंधित जिलों के जिलाधिकारी इसे अधिसूचित करते हैं। अधिसूचित होने के बाद जमीन की रजिस्ट्री में उस खास तरह की जमीन का सरकार वही मूल्य मानकर चलती है। जमीन विक्रेता या खरीदार को उसी आधार पर निबंधन शुल्क तय करना होता है। अगर कोई जमीन एमवीआर से कम कीमत में भी खरीदता है तो उसे निबंधन शुल्क एमवीआर के तहत ही देना होता है।

मुआवजा भी एमवीआर के तहत ही मिलेगा==अगर किसी सरकारी परियोजना के लिए किसी रैयत की जमीन अधिग्रहित की जाती है तो उस रैयत को मुआवजा के रूप में जमीन की कीमत एमवीआर के तहत ही दी जाएगी। इसके लिए संबंधित जिले के जिलधिकारी के गाइडलाइन को ध्यान में रखा जाता है।