Bihar Politics: नीतीश से बंधी कांग्रेस की उम्मीद की डोर, सरकार के विरोध के मुद्दे पर राजद से झाड़ा पल्ला

पटना :-  उपचुनावों में महागठबंधन में उपेक्षित और राजद के रवैये से खिन्न कांग्रेस ने राज्य सरकार के खिलाफ तेजस्वी यादव के रिपोर्ट कार्ड से दूरी बना ली है। तेजस्वी संपूर्ण क्रांति दिवस के मौके पर पांच जून को नीतीश सरकार के वर्तमान कार्यकाल की रिपोर्ट जारी कर रहे हैं, जिसमें आंकड़ों के साथ राज्य सरकार की सच्चाई सामने लाने का दावा किया गया है।

कांग्रेस ने दो कारणों से इसका विरोध किया है। एक तो जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का आगाज कांग्रेस के विरोध में किया था और दूसरा कांग्रेस को महागठबंधन शब्द पर आपत्ति है। कांग्रेस प्रवक्ता प्रेमचंद मिश्रा का कहना है कि महागठबंधन तो उपचुनाव के वक्त ही टूट गया था। अब राजद किस महागठबंधन की बात कर रहा है।

राजद से कांग्रेस की तात्कालिक नाराजगी इसलिए भी है कि राजद की ओर से पटना में लगाए गए पोस्टरों में सिर्फ तेजस्वी की तस्वीर है। अन्य पोस्टरों में लालू-राबड़ी और तेजस्वी के साथ वामदलों के कुछ बड़े नेताओं की भी तस्वीरें लगी हैं। नीतीश सरकार के रिपोर्ट कार्ड से संबंधित किसी भी पोस्टर में कांग्रेस को भाव नहीं दिया गया है। हालांकि तेजस्वी रिपोर्ट कार्ड को संपूर्ण विपक्ष का आयोजन बता रहे हैं।

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कांग्रेस को किसी मुफीद साथी की तलाश :- पिछले एक वर्ष के दौरान महागठबंधन से दरकिनार कर दिए गए कांग्रेस को अपने लिए बिहार में किसी मुफीद साथी की तलाश है। वामदलों से अपेक्षा है। प्रयास भी जारी है। विधान परिषद की सात सीटों पर होने जा रहे चुनाव में राजद से चोट खाई भाकपा माले को कांग्रेस समझाने में लगी है कि लालू प्रसाद से वफादारी की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

भाजपा और जदयू के कुछ नेताओं के बीच तल्ख बयानबाजी के कारण कांग्रेस की उम्मीद की एक डोर नीतीश कुमार से भी बंधी है। कांग्रेस का एक खेमा अभी भी लालू प्रसाद से उम्मीद लगाए बैठा है। ये ऐसे लोग हैं, जो राजद से गठबंधन के तहत चुनाव मैदान में जाना चाहते हैं, ताकि उन्हें लालू के वोट बैंक का सहारा मिल जाए। संगठन में बैठे लोग अन्य दलों के साथ जुड़कर अपनी संभावनाओं को बढ़ाना चाहते हैं।

तेजस्वी के सामने दुविधा :- हाल के दिनों में नीतीश कुमार से बढ़ी नजदीकियों के चलते तेजस्वी के हमले में वह तल्खी नहीं रह गई है। राज्य सरकार के खिलाफ बयान तो जारी जरूर करते हैं, लेकिन फोकस में जदयू नहीं, भाजपा को ज्यादा रखते हैं। दूसरी तरफ से भी ऐसी ही मजबूरियां दिखती हैं।

दोनों तरफ से सबकुछ संकेतों में चलता है। ऐसे में सरकार का लेखा-जोखा बताने जा रहे तेजस्वी के सामने दुविधा है कि वह कितना और किस वेग से नीतीश कुमार की नीतियों पर हमला करते हैं।