Bihar Politics: तेजस्वी यादव के दावे पर JDU-BJP की ‘बेचैन प्रतिक्रियाएं’ क्या सियासी भूचाल के संकेत हैं?

पटना। राष्ट्रीय जनता दल के नेता व बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने शुक्रवार को अपने विधानसभा क्षेत्र में दिए अपने एक बयान में कहा कि बिहार की एनडीए सरकार 2 से 3 महीने में गिरने वाली है. अब इस बयान के बाद बिहार में सियासी भूचाल आ गया है. हालांकि इस बयान के बाद नीतीश कुमार की तरफ से तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन एनडीए के अन्य नेताओं की बेचैनी सहज ही समझी जा सकती है. तेजस्वी के हल्के-फुल्के अंदाज में कहे गए इस बयान के बाद जेडीयू-बीजेपी के कद्दावर नेताओं में बौखलाहट का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल से लेकर जेडीयू के आरसीपी सिंह और उपेंद्र कुशवाहा तक ने तेजस्वी यादव के बयान पर अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं. यही नहीं, जीतन राम मांझी तक को एक तरह से अपनी सफाई पेश करनी पड़ी और यह बयान देना ही पड़ा कि एनडीए सरकार पर कोई खतरा नहीं है.

हाल में ही राष्ट्रीय लोक समता पार्टी छोड़ जदयू में शामिल हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने तो सीधे तौर पर यह दावा कर दिया कि अगले 5 साल तक नीतीश सरकार को दुनिया की कोई भी ताकत गिरा नहीं सकती. उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में एनडीए की सरकार अगले अपना कार्यकाल पूरा करेगी और इसे कोई खतरा नहीं है. यही नहीं उन्होंने यह भी दावा किया कि आरजेडी के कई विधायक उनके संपर्क में हैं. अब कुशवाहा के दावे और तेजस्वी के बयान के राजनीतिक मर्म को समझें तो यह बिहार विधानसभा के उस कठिन सियासी समीकरण की ओर ही इशारा करता है जिससे लगता है कि बिहार की सत्ता-सियासत में में कभी भी कुछ भी हो सकता है।

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तेजस्वी के बयान पर प्रतिक्रियाओं का दौर
बता दें कि तेजस्वी यादव हाल में ही (शुक्रवार को) अपने विधानसभा क्षेत्र राघोपुर में लोगों का हाल-चाल लेने और बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र का जायजा लेने गए थे. लेकिन, इसी दौरान वहां के कुछ लोगों ने नाराजगी जताई जिस को शांत करने की कोशिश में तेजस्वी यादव ने कह दिया कि घबराइये नहीं क्योंकि बिहार की सरकार अगले 2 से 3 महीने में गिर जाएगी. तेजस्वी यादव के इस दावे में कितना दम है यह तो वक्त बताएगा, लेकिन उनके इस ‘हल्के’ बयान ने बिहार में ऐसी सियासी हलचल मचा दी है कि ऐसा लगने लगा है कि नीतीश सरकार अब गिरी कि तब गिरी. यही वजह है कि जदयू और एनडीए के विभिन्न घटक दल सब की ओर से बेचैनी भरी प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैंं।

तेजस्वी के मैसेज पर आरसीपी का पलटवार
इस बीच राजद की ओर से अपने विधायकों को यही मैसेज दिया गया है कि आप एक रहें इनटैक्ट रहें. कोई टूट-फूट की जरूरत नहीं है क्योंकि आने वाले समय में बिहार की राजनीति में कुछ भी हो सकता है. सोमवार को राजद नेता तेजस्वी यादव ने विधायक दल की बैठक में बड़ा बयान देते हुए कहा कि बिहार की राजनीति में कभी भी कुछ भी संभव है. सभी विधायक एकजुट होकर साथ रहे, सरकार की नाकामियों को जनता के बीच रखें. अब राजनीतिक इस कवायद के बीच जदयू और राजद के बीच सीधी वार पलटवार का दौर और तेज हो गया है. इसमें जदयू के कद्दावर नेता आरसीपी सिंह भी कूद पड़े हैं. उन्होंने दावा करते हुए कहा कि नीतीश सरकार को कोई खतरा नहीं है और तेजस्वी बिना सिर पैर की बात कर रहे हैं.

जेडीयू नेताओं की इतनी बेचैनी का सबब क्या है?
इससे एक दिन पहले ही आरसीपी सिंह ने तेजस्वी के राघोपुर वाले बयान पर कहा था, ‘तेजस्वी विपक्ष के नेता हैं. वह अपने एजेंडे के साथ जनता के बीच जाएं. अब वह उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार गिर जाएगी. आप समझ सकते हैं कि अभी आम का सीजन है और 1 माह में समाप्त नहीं हो जाएगा. अगर आप कार्तिक माह में पेड़ से आम गिरने की उम्मीद करें तो यह हास्यास्पद है क्योंकि आम क्योंकि आम अपने सीजन में ही होगा. लोकतंत्र में बहुमत का सीजन चुनाव के समय होता है और अब चुनाव खत्म हो चुका है. 2024 में लोकसभा और 2025 में विधानसभा चुनाव आएगा तो उन्हें उसकी तैयारी करनी चाहिए. बहरहाल इन दावों-प्रतिदावों के बीच सवाल है कि तेजस्वी महागठबंधन की सरकार बनाने का आखिर दावा कर कैसे रहे हैं?

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तेजस्वी यादव को अदालत इस बात की है आस
दरअसल तेजस्वी का यह भरोसा उन 17 सीटों को लेकर भी जिन पर महागठबंधन के उम्मीदवार बेहद मामूली अंतर से चुनाव हार गए थे और तेजस्वी इन सीटों के नतीजे को कोर्ट ले जाने की तैयारी में हैं. तेजस्वी के मुताबिक उन्हें शक है कि इन 17 सीटों पर महागठबंधन के उम्मीदवारों को साजिश कर कराया गया. यहां यह बता दें कि ऐसी ही 18 अन्य सीटें भी हैं जिनपर एनडीए के उम्मीदवार भी बेहद कम अंतर से हारे हैं. जाहिर है तेजस्वी का यह दावा कोर्ट में कितना स्पेस पाएगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा. लेकिन अब सवाल उठता है कि फिर जेडीयू के उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह नीतीश सरकार गिरने की बात सुनकर ही इतने बेचैन क्यों हैं?

फिलहाल एनडीए को बहुमत, पर खतरा बरकरार
इसके पीछे की हकीकत जानने के लिए बिहार में बहुमत की सत्ता का गणित समझना जरूरी है. प्रदेश में फिलहाल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए (NDA) की सरकार चल रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चल रही सरकार को फिलहाल 243 सीटों में 127 विधायक का समर्थन प्राप्‍त है. इनमें भारतीय जनता पार्टी के 74, जनता दल यूनाइटेड के 44 ( लोजपा के विधायक राजकुमार सिंह व बसपा के विधायक जमा खान के जेडीयू में मिलने और मेवालाल चौधरी के निधन के बाद खाली हुई सीट के बाद 44 सीटें), मांझी की पार्टी हम के और मुकेश सहनी की पार्टी के 4 विधायकों का सपोर्ट है. इसके साथ ही एक निर्दलीय का भी समर्थन नीतीश सरकार को प्राप्त है. साफ है कि 243 सीटों वाली विधानसभा में फिलहाल बहुमत को लेकर कोई चिंता नहीं है.

महागठबंधन के लिए ऐसे बन रही है उम्मीद
दूसरी ओर महागठबंधन में राजद के 75, कांग्रेस के 19 और वाम दल के 16 विधायक हैं. यानी सीधे तौर पर 110 विधायकों की संख्या के साथ बहुमत से महज 12 सीट दूर है. दूसरी ओर एआईएमआईएम के 5 विधायक हैं. ये सभी विधायक पहले ही अपना रुख जाहिर कर चुके हैं कि वे महागठबंधन को बिना शर्त समर्थन दे सकते हैं. यानी कुल 115 विधायकों का तो स्पष्ट समर्थन है. यानी बहुमत से महज 7 सीटें दूर. ऐसे में अगर मांझी-सहनी का थोड़ा भी मन डोला तो उनके 8 विधायक महागठबंधन के लिए सत्ता का गणित सुलझा सकते हैं. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि दरअसल जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी एनडीए का हिस्सा हैं और इनकी क्रमश: हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी की 4-4 सीटों को लेकर यह डर है और यही उनकी बेचैनी का सबब भी है.

महागठबंधन को सियासी भूचाल आने का इंतजार
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि इन दोनों ही पार्टियों के 8 विधायकों के पाला बदलने की आस खुद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को भी है, तभी तो उन्होंने मांझी और सहनी से टेलिफोन पर बात भी की है और बैकडोर सियासी समीकरण फिट करने की कोशिश भी लगातार कर रहे हैं. हालांकि मांझी-सहनी ने भी यह कहा है कि एनडीए सरकार को कोई खतरा नहीं है और उनका पूर्ण समर्थन एनडीए को है. लेकिन, राजनीति के जानकार कहते हैं कि अपने कार्यकर्ताओं को शांत करने के लिहाज से कहे गए इस हल्के बयान पर भी कुशवाहा और आरसीपी की ‘बेचैन प्रतिक्रिया’ अंदरुनी तौर पर जरूर कुछ न कुछ सियासी हलचल की ओर संकेत करते हैं. महागठबंध के लोगों को इंतजार सिर्फ उस सियासी भूचाल आने के वक्त का है जो कि सत्ता-समीकरण को पलट कर रख देगा।

Source-news 18