सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की एक अपील को खारिज कर दिया और अदालत का समय बर्बाद करने के लिए राज्य सरकार पर 20,000 रुपये का जुर्माना लगाया। यह अपील विभिन्न पक्षों की सहमति के बाद पटना उच्च न्यायालय द्वारा एक मामले के निपटान से जुड़ी थी। जस्टिस एसके कौल और आरएस रेड्डी ने कहा कि राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय की पीठ के आदेश के खिलाफ पिछले साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की थी। उच्च न्यायालय ने सहमति के आधार पर अपनी याचिका का निपटारा किया।
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया
शीर्ष अदालत के अनुसार, उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि कुछ समय सुनवाई के बाद मामले में पेश वकीलों ने संयुक्त रूप से आग्रह किया कि अपील का सहमति के आधार पर निपटारा किया जाए। पीठ ने कहा, इसके बाद सहमति के आधार पर निपटारा कर दिया गया। इसके बावजूद विशेष अनुमति याचिका दायर की गई। हम इसे अदालती प्रक्रिया का पूरी तरह दुरुपयोग मानते हैं और वह भी एक राज्य सरकार द्वारा। यह अदालत के समय की भी बर्बादी है।
पीठ ने 22 मार्च के अपने आदेश में कहा, इस प्रकार हम एसएलपी पर 20 हजार रुपये का जुर्माना करते हैं, जिसे चार हफ्ते के अंदर उच्चतम न्यायालय समूह सी (गैर लिपिकीय) कर्मचारी कल्याण संगठन के पास जमा कराया जाए। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार यह जुर्माना उन अधिकारियों से वसूले, जो इस दुस्साहस के लिए जिम्मेदार हैं।
यह माजरा हैं
एक सरकारी कर्मचारी को जून 2016 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उसने अपनी बर्खास्तगी को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट की एकल जज की पीठ ने इस पर फैसला सुनाया। बिहार सरकार के वकील ने हाई कोर्ट की खंडपीठ से कहा कि वह दिसंबर 2018 के फैसले के सिर्फ उस हिस्से से असहमत है, जिसमें सरकारी कर्मचारी के खिलाफ जांच करने का निर्देश दिया गया था। हाई कोर्ट ने कहा कि कुछ समय की सुनवाई के बाद वकीलों ने संयुक्त रूप से अनुरोध किया कि अपील का सहमति के आधार पर निपटारा कर दिया जाए।
Source-jagran