आज की होली और लगभग 30 से 40 साल पूर्व मनाई जाने वाली होली में काफी बड़ा अंतर आ गया है। इस बारे में सोनवर्षा निवासी 60 वर्षीय भोला कुंवर ने कहा कि आज हर चीज डिजीटल हो रहा है। आज की होली भी डिजीटल हो गई।
कहा कि आज युवाओं के द्वारा केवल अपने फेसबुक, इंस्टाग्राम समेत अन्य इंटरनेट मीडिया पर फोटो पोस्ट करने के सेल्फी के लिए होली मनाते हैं। वहीं मिलकी गांव निवासी बुजुर्ग सजन शर्मा कहते हैं कि आजकल हमलोग इतने आगे निकलते जा रहे हैं कि अपनी सभ्यता व संस्कृति को पीछे छोडऩे से गुरेज नहीं कर रहे हैं।
हमारे समय में होली में दुश्मन भी गले मिल जाते हैं। रंग लगा देने पर प्यार दुलार और स्नेह की बौछार होती थी। आज रंग लगाने पर सामने वाला झगड़ा कर लेगा। शिक्षक कालीकांत पाठक कहते हैं कि हमारे समय मेें होली के दौरान हुड़दंग व मस्ती के साथ सम्मान व अनुशासन भी रहता था।
आज अश्लील गाना प फूहड़ता होली पर हावी होता जा रहा है। इसी तरह बिहपुर के राजू प्रसाद सिंह कहते हैं कि एक चौपाल पर गांव के लोगों का इक_े होकर फाग व जोगीरा गीत गाना एवं मौजूद लोगों द्वारा स र र र कहकर पूरे माहौल मस्ती वाला बना देने के दिन अब नजर नहीं आता है।
शाम में छोटे व बड़ों का गांव के सभी घरों में जाकर होली की मुबारकबाद देने व मुंह मीठा कराने की परंपरा लुप्त हो गई है। वहीं रंजीत सिंह कहते हैं कि पुराने समय के लोग नए कपड़े पहन कर होली पर रंग लगवाने के लिए घर से निकलते थे। होली के दौरान अपने ससुराल आए व्यक्ति के साथ उस टोले के पूरे युवक होली खेलने पहुंचते थे। जो अब नजर नहीं आता है।
अब तो लोगों को दिखाने के लिए अपने ही हाथों के अंगुली से अपने चेहरे पर गुलाल लगाकर इंटरनेट मीडिया पर हैप्पी होली लिखकर पोस्ट लिखकर होली मनाई जाने लगी है। फाग, जोगिरा व जानी आदि के बारे में आज के युवाओं को मतलब तक मालूम ही नहीं है।