बहाली के दस साल बाद शिक्षकों के प्रमाण पत्र की वैधता की हो रही खोज, जानें मामला…

मुजफ्फरपुर जिले में नियुक्ति के 10 साल बाद शिक्षकों के प्रमाण पत्रों की वैधता की जांच के आदेश दिए गए हैं। यदि इनमें अमान्य संस्थान की डिग्री वाले शिक्षक मिलेंगे तो उन्हें हटाया जाएगा।

मुजफ्फरपुर जिले में नियुक्ति के 10 साल बाद शिक्षकों के प्रमाण पत्र की वैधता की खोज शुरू हुई है। जिला समेत सूबे में 2012 में 34540 कोटि के सहायक शिक्षक के पद पर नियुक्ति हुई थी। जिले में 300 से अधिक और सूबे में ढाई हजार से शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी। बचे हुए पद पर 2019 में नियुक्ति हुई।
इस नियुक्ति में वेतन भुगतान से पहले प्रमाण पत्र की जांच का आदेश दिया गया। इसमें अमान्य संस्थान की डिग्री पर नियुक्त शिक्षक धरे गए और इन्हें हटाने का आदेश दिया गया।

वर्ष 2019 की नियुक्ति में जिन अमान्य संस्थान की डिग्री सामने आई, उसी डिग्री पर 2012 में भी नियुक्ति हुई है। डिग्री फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद अब विभाग ने 10 साल पहले की नियुक्ति को लेकर भी जांच का आदेश दिया है। अमान्य संस्थान की डिग्री में जिले के भी कई प्रशिक्षण संस्थान शामिल हैं।

उनको कहीं से मान्यता नहीं मिली है। उस डिग्री पर नियुक्त शिक्षक अब कार्रवाई के घेरे में हैं। जिले के साथ समस्तीपुर, वैशाली के कई प्रशिक्षण संस्थान भी अमान्य सूची में है। डीपीओ स्थापना जमालुद्दीन ने सभी बीईओ को इस संबंध में निर्देश दिया है।

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112 से अधिक संस्थान की सूची की गई है जारी …डिग्री फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद शिक्षा विभाग ने 112 अमान्य संस्थाओं की सूची जारी की है। इसके साथ 20 अन्य संस्थाओं की सूची जारी की गई है जिनकी डिग्री को शिक्षक नियुक्ति में मान्यता नहीं दी गई है।

डीपीओ स्थापना ने बताया कि इसमें कुछ संस्थान ही ऐसे है जिनके पास कुछ सत्र की मान्यता है। संबंधित सत्र का मिलान कर लेना है और इसके अलावा अन्य शिक्षक की नियुक्ति अवैध मानी जाएगी। डीपीओ ने कहा कि अगर ऐसे शिक्षकों का वेतन भुगतान होता है तो उसकी वसूली अधिकारियों से होगी।

जांच का आदेश                                                        1. वर्ष 2012 में 34540 कोटि के सहायक शिक्षक पद पर हुई थी नियुक्ति
2. बिना मान्यता वाली संस्थान की डिग्री पर नियुक्त शिक्षक कार्रवाई के घेरे में
3. जिले के साथ समस्तीपुर, वैशाली के कई प्रशिक्षण संस्थान अमान्य सूची में
4. 2019 में बचे पद पर हुई नियुक्ति के बाद जांच में सामने आया था फर्जीवाड़ा