बड़हिया (लखीसराय) : सूर्य के शुक्रवार की रात आठ बजकर 49 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश कर जाने के साथ ही सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो गए। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश हो जाने पर ही इसको मकर संक्रांति कहा जाता है।
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही सूरज की उष्मा धीरे-धीरे बढ़ने लगेगी जिसका अनुकूल प्रभाव प्रकृति व मानवीय स्वास्थ्य पर पड़ेगा। सूर्य के उत्तरायण होने के साथ ही खरमास की भी समाप्ति होगी। इसके बाद मांगलिक कार्यों की भी सुगबुगाहट तेज हो जाएगी। यह जानकारी प्रतिभा चयन एकता मंच बड़हिया के कार्यालय में मंच से सचिव सह संस्कृत शिक्षक व ज्योतिष के जानकार पीयूष कुमार झा ने कही। उन्होंने कहा कि माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी जिसे भानु सप्तमी या रथ सप्तमी भी कहते हैं वह तभी होती है जब सूर्य मकर राशि में केंद्रित रहते हैं। उस दिन सूर्य के सम्मान में अधिकांश लोग नमक नहीं खाते हैं।
मकर राशि में सूर्य के प्रवेश से ही वसंत के आगमन की रूपरेखा तैयार हो जाती है और प्रकृति में सकारात्मक बदलाव आने लगता है। मकर राशि में सूर्य 14 फरवरी तक रहेंगे। इसके अंत तक ठंड लगभग समाप्त हो जाता है तथा पेड़ों में नए पत्तों का आगमन, आम के पेड़ में मंजर का आना, रबी की फसल का पोषण भी इसी कालावधि में होता है।
पौराणिक ग्रंथों में उत्तरायण सूर्य का काफी महत्व है, महाभारत में भीष्म पितामह बाण शय्या पर रहते हुए उत्तरायण सूर्य में ही अपने प्राण त्यागे थे। ग्लोब पर इसी कारण से उत्तरी गोलार्ध में कर्क रेखा तथा दक्षिणी गोलार्ध में मकर रेखा की परिकल्पना की गई है। कारण जब कर्क रेखा के समीप ठंड रहती है तो मकर रेखा के पास गरमी का मौसम होता है। केवल मकर संक्रांति के समय सूर्य के पूजन में तिल का प्रयोग किया जाता है।
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से स्वास्थ्य रक्षा के लिए सूर्य नमस्कार व्यायाम, सूर्य भेदी प्राणायाम, सूर्य को अड़हुल फूल के साथ जल अर्पण तथा रविवार को अलवण व्रत काफी लाभदायक है।