जमुई। झाझा प्रखंड की सभी छोटे बड़े बाजारों की दुकानें धनतेरस को लेकर सज गई है। धनतेरस पर जमकर बिक्री होने की उम्मीद है। सिमुलतला के व्याकरणाचार्य कामेश्वर पांडे ने बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को भगवान धन्वंतरी का जन्म हुआ था। इस दिन विधि विधान पूर्वक धन्वंतरी भगवान की पूजा अर्चना की जाती हैं। धन्वंतरी की पूजा से परिवार स्वस्थ और निरोगी रहता है। भगवान धन्वंतरी आयुर्वेद के जनक माने जाते हैं और भगवान विष्णु का अंश भी। 13 तिथि के दिन धन्वंतरी के जन्म के कारण ही इस दिन को धनतेरस कहा जाता है।
भगवान धन्वंतरी की पूजा विधि
सबसे पहले उनकी तस्वीर को ऐसे स्थापित करें कि आपका मुंह पूजा के दौरान पूर्व दिशा की ओर हो। इसके बाद हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें और भगवान धन्वंतरी का आह्वान करें। तस्वीर पर रोली, अक्षत, पुष्प, जल, दक्षिणा, वस्त्र, कलावा, धूप और दीप अर्पित करें। नैवेद्य चढ़ाएं और भगवान धन्वंतरी के मंत्रों का जाप करें। आरती करें और दीपदान करें।
शाम को जरूर करें दीपदान
धनतेरस के दिन शाम को दीपदान जरूर करना चाहिए। इसका वर्णन स्कंद पुराण और पद्मपुराण में भी किया गया है। ये दीपदान यमदेवता के नाम पर किया जाता है। इससे परिवार के लोगों की रक्षा होती है। इस दीपक को घर के मुख्य द्वार की दहलीज पर रखा जाता है। शाम को सूर्यास्त के बाद जब घर पर सभी सदस्य मौजूद हों, तब इस दीपक को घर के अंदर से जलाकर लाएं और घर से बाहर उसे दक्षिण की ओर मुख करके नाली या कूड़े के ढेर के पास रख देना चाहिए। ‘मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह, त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीतयामिति’ मंत्र बोलें और दीपक पर जल छिड़कें। दीपक को बगैर देखे घर में आ जाएं।
ये है दीपदान का शुभ समय
धनतेरस के दिन दीपदान और पूजन का अतिशुभ समय शाम पांच बजे से शाम छह बजकर 30 मिनट तक है। शाम छह बजकर 30 मिनट से रात आठ बजकर 11 मिनट का समय भी पूजा और दीपदान के लिए शुभ है।