बिहार में लगान वसूली के बहाने किसान रोज ठगे जा रहे हैं। ठगी की गई राशि उनके लिए छोटी हो सकती है, लेकिन ठगी करने वाले इस नाम पर बड़ी रकम की चपत लगा रहे हैं। लगान वसूली में कहीं भी एकरूपता नहीं है। एक ही साल की रसीद दो बार काटी जा रही है।
अपर मूख्य सचिव ने जिलों को लिखा पत्र
दरअसल, राज्य में लगान वसूली की पूरी व्यवस्था ‘नाजायज कर्मचारियों’ के हवाले है। किसान तो असली कर्मचारी को पहचानते भी नहीं हैं। सबकुछ दलाल के हवाले ही होता है। जमीन मालिक तो उसे कर्मचारी मानते ही हैं, अधिकारी भी उसी से बात करते हैं। विभाग ने लगान जमा करने की व्यवस्था ऑनलाइन कर दी है। ऑफलाइन व्यवस्था भी जारी है। अधिक किसान ऑफलाइन ही रसीद कटा लेते हैं। इसके लिए कर्मचारी उनके घर भी जाते हैं पर इ नाम पर ठगे जा रहे हैं। विभाग को पहले भी इसकी शिकायत मिली थी। उसके बाद शेष को लेकर उत्पन्न भ्रांति को दूर करते हुए अपर मुख्य सचिव ने सभी जिलों को पत्र लिखा व सारी स्थिति साफ कर दी। बावजूद किसानों की परेशानी दूर नहीं हो रही और पूरी व्यवस्था का संचालन ‘नाजायज कर्मचारी’ ही कर रहे हैं।
लगान में एकरूपता नहीं रहने की शिकायत
राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री रामसूरत कुमार ने कहा कि ऑफलाइन और ऑनलाइन में अंतर की भी शिकायत मिली हैं। उसे दुरुस्त करने के लिए कहा गया है। ऑनलाइन डिमांड बैक डेट से जारी हो जा रहा है। इस कठिनाई को दूर करने में तकनीकी टीम लगी है। जिस किसान को अधिक पैसा देना पड़ा है उसका समायोजन किया जाएगा। जमीन मापी की दर भी अब एक समान की जाएगी।
10 के गुणक में ही देना है लगान व सेस
राज्य में लगान वसूली की नई दर सरकार ने वर्ष 2016 में ही जारी की थी। इसके अनुसार वसूली 10 के गुणक में ही करनी है। यानि अब खुदरा पैसे की जरूरत नहीं रही। सेस की वसूली भी उसी गुणक में करनी है। कर्मचारी इस व्यवस्था का नाजायज लाभ लेकर किसानों का दोहन करते हैं। अपर मुख्य सचिव विवेक सिंह ने इसको लेकर एक साल पहले एक पत्र भी जारी कर स्थिति साफ कर दी है। उसके अनुसार एक पैसा से पांच रुपये तक की जमाबंदी पर पांच रुपये ही लगान की वसूली होगी। सेस की राशि भी लगान की तरह ही पांच रुपये वसूली जाएगी। पांच रुपये एक पैसे से लेकर दस रुपये तक की जमाबंदी के लिए दस रुपये ही देने होंगे। यानी सरकार के अनुसार रसीद काटने में खुदरा की जरूरत को खत्म करने के लिए व्यवस्था की गई है। पहले जहां चार रुपये एक पैसा लगान होता था तो कर्मचारी खुदरा लौटते नहीं थे और वह राशि खजाने में जमा नहीं होती थी। लिहाजा सरकार ने नई व्यवस्था कर दी।
केस स्टडी-1
पूर्णिया जिले के बशिष्ठ सिंह, हरि प्रसाद भगत और अखिलेश सिंह सहित दर्जन भर लोगों से वसूले जानेवाले लगान में एकरूपता नहीं है। कहीं 250 रुपये प्रति एकड़ तो कहीं 360 रुपये की दर से रसीद काटी जा रही है। इन लोगों ने पूर्णिया के डीएम को शिकायत भी की है।
केस स्टडी-2
वैशाली जिले के बहुआरा मौजा में फकीर चन्द सिंह की ऑनलाइन रसीद 2330 रुपये की काटी गई। रामचन्द्र सिंह की रसीद 1910 रुपये की काटी गयी, लेकिन सड़क के लिए अधिग्रहित उसी जमीन की ऑफलाइन रसीद कटाने पर दोनों को 12300 रुपये की रसीद दी गई।
केस स्टडी-3
भोजपुर के सप्ताडीह मौजे में स्व. धनपत पांडेय को चार एकड़ 68 डिसमिल की रसीद 410 रुपये लेकर दी गई। आश्चर्य है कि उस मौजे में उक्त किसान की जमीन एक एकड़ से भी कम है। उसके अगले साल जब ऑनलाइन रसीद कटाई गई तो डिमांड उस साल की भी आ गयी जिसका लगान जमा किया गया है।
Source-hindustan