पटना महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा की पूजा के लिए तैयार है. राजधानी में बड़ी संख्या में घरों में कलश प्रतिष्ठान हैं। जानकारों के अनुसार घाट स्थापना मुहूर्त और अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना का विशेष महत्व है. घाट स्थापना के दिन चित्रा नक्षत्र, गुरुवार और विष कुंभ जैसे शुभ योग बन रहे हैं. इस दिन कन्या राशि में चतुर्ग्रही योग भी बन रहा है। घाट स्थापना मुहूर्त 7 अक्टूबर को सुबह 6.17 बजे से 7.07 बजे तक और अभिजीत मुहूर्त 11.51 बजे से दोपहर 12.38 बजे तक है।
ज्योतिषाचार्य पीके युग का कहना है कि चित्रा वैधृति योग के निषेध के कारण अभिजीत मुहूर्त में 7 अक्टूबर को कलश स्थापना विशेष फलदायी होगी। इस मुहूर्त में जो भक्त मां का आह्वान नहीं कर सके, वे दोपहर 12.14 बजे से दोपहर 1:42 बजे तक और अमृत के चौघड़िया में दोपहर 1:42 बजे से 3:9 बजे तक अमृत के चौघड़िया में कलश-पूजन कर सकते हैं. हुह।
इच्छा के अनुसार जप करें
पीके युग का कहना है कि नवरात्रि में मनचाहा जप करना चाहिए। शास्त्रों में फल प्राप्ति के लिए एक पाठ, मन की शांति के लिए तीन पाठ, सभी प्रकार की शांति के लिए पांच पाठ, भय से मुक्ति के लिए सात पाठ, यज्ञ के फल की प्राप्ति के लिए नौ पाठ हैं। यदि कोई नौ दिनों तक पाठ करने में असमर्थ है तो वह चार, तीन, दो या एक दिन के सात्विक उपवास के साथ पाठ कर सकता है। व्रतियों ने अपनी सुविधा के अनुसार तेरह अध्यायों को नौ दिनों में विभाजित किया और अंत में सिद्धकुंजिका स्रोत का पाठ किया। रक्त कनेर (ओरहुल) का फूल देवी को बहुत प्रिय होता है। आम तौर पर व्रत नवमी पूजा के बाद कुमारी पूजा और हवन एक ही दिन किया जा सकता है।
पंचांग-पुराण और से
शारदीय नवरात्रि का महत्व:
अश्विन के नवरात्र को शारदीय नवरात्र कहा जाता है। सूर्य के दक्षिणायन काल में देवी की आराधना को विशेष महत्व दिया गया है। इसलिए आश्विन की नवरात्रि में विशेष रूप से देवी की पूजा करने की परंपरा है। चूँकि यह समय ग्रीष्म और शीत का मिलन होता है, इसलिए इन दोनों का मिलन आध्यात्मिक विकास के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। प्रतिपदा से नवमी तक देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में शुक्ल प्रतिपदा से चैत, आषाढ़, आश्विन और माघ मास की नवमी तक चार नवरात्रों की चर्चा है। आषाढ़ और माघ मास में पड़ने वाली गुप्त नवरात्रि का तंत्र साधना में विशेष महत्व है। चैत में बसंती नवरात्रि का आयोजन किया जाता है।