गया। यूनेस्को ने हजारों साल पुराने रॉक पेंटिंग के ऐतिहासिक महत्व को मान्यता देकर विश्व धरोहर का दर्जा दिया है। शैल चित्रों के कारण मध्यप्रदेश का भीमा बैठका न केवल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है, बल्कि राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के मानचित्र पर भी अपनी जगह बना चुका है। लेकिन कैमूर की पहाड़ी गुफाओं के दर्जनों शैलचित्र आज भी एक भगीरथ की प्रतीक्षा में हैं।
हजारों साल पहले के ये शैल चित्र मध्यपाषाण काल के पूर्वजों की कलात्मक विकास यात्रा से भी जुड़े हुए हैं, जब वे गुफाओं में रहते हुए पत्थरों पर अपनी आंतरिक भावनाओं को उकेरते थे। आकर्षण के रंग भी उसी समय खोजे गए होंगे। करीब चार साल पहले जिला प्रशासन ने इसे विकसित कर पर्यटकों को आकर्षित करने की योजना बनाई थी, जो अब तक धरातल पर नहीं उतरी है। 150 साल पहले शुरू हुई थी खोज:
शैल चित्रों को खोजने का कार्य 1867 ई. में प्रारंभ हुआ। इसके बाद राज्य सरकार के पुरातत्व निदेशालय द्वारा कुछ खोज भी की गई। डेढ़ दशक पहले कर्नल उमेश प्रसाद के नेतृत्व में कुछ शैल चित्रों की खोज हुई थी। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के विशेषज्ञ डॉ. श्याम सुंदर तिवारी ने भी हाल के वर्षों में लगभग तीन दर्जन नए शैल चित्रों की खोज की है। रंग के रूप में किया गया है धाऊ पत्थर का इस्तेमाल डॉ. श्याम सुंदर तिवारी का कहना है कि कैमूर की गुफाओं में बने शैलचित्रों को पत्थरों पर लौह पत्थर को पीसकर और पतले ब्रश से उकेरा गया है, जो आज भी ताजा दिखता है। इन शैल चित्रों से हमें उस समय के समृद्ध चित्रकला कौशल की भी जानकारी प्राप्त होती है। इन शैल चित्रों में बाघ, कुत्ता, सुअर, बैल, गैंडा, हाथी, हिरण सहित अन्य जानवरों को इंसानों द्वारा शिकार करते दिखाया गया है। अनेक चित्रों में एक से अधिक रंगों का प्रयोग किया गया है। अधिकारियों का कहना है:
विभाग कैमूर पहाड़ी पर स्थित शैल चित्रों एवं अन्य ऐतिहासिक स्थलों के विकास के लिए प्रयास कर रहा है। इन जगहों को चिन्हित कर विकास का ड्राफ्ट शासन को भेजा जाएगा। यहां ईको-टूरिज्म की अपार संभावनाएं हैं।