पटना, हिंदी सिनेमा के ट्रैजेडी किंग दिलीप कुमार के निधन से फैंस दुखी हैं। बुजुर्गों से लेकर युवाओं तक उनकी एक्टिंग की काफी तारीफ हुई है। शायद यही वजह है कि उनके जाने से राजनेता हो या अभिनेता, किसान हो या गृहिणियां, सभी दुखी हैं. लोग उस समय को याद करते हैं जब दिलीप साहब की फिल्में सिनेमाघरों में आती थीं। पटना में रिक्शा और छोटे शहरों में बैलगाड़ी उनकी फिल्मों का प्रचार करते थे। सिनेमा हॉल में टिकट के लिए हाथापाई हुई। लोग काले रंग में टिकट खरीदते थे।
गंगा जमुना के लिए सीखी थी विशिष्ट भोजपुरी
फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम का कहना है कि 1960 के दशक में लोगों में दिलीप साहब की फिल्मों के प्रति दीवानगी थी। साल 1961 में दिलीप साहब की फिल्म गंगा जमुना रिलीज हुई थी। इसमें वह एक ग्रामीण की भूमिका में थे। फिल्म में वे पहली बार भोजपुरी बोलते नजर आए थे। इसके लिए उन्होंने ठेठ भोजपुरी भाषा सीखी थी। भोजपुरी बोलने की वजह से बिहार के लोगों में एक अलग ही खुशी देखने को मिली।
उनकी फिल्में पटना में सिल्वर जुबली मनाती थीं
सीनियर थिएटर आर्टिस्ट सतीश आनंद के मुताबिक जब दिलीप साहब की फिल्में पटना में होती थीं तो शहर में कोहराम मच जाता था। उनके पटना आने की अटकलों को लेकर कई बार शहर में शोर मच गया। उन दिनों पटना के वीणा, रूपक, पर्ल, अशोक सिनेमा हॉल में दिलीप कुमार की फिल्में लगती थीं. फैंस उनकी फिल्मों का इंतजार करते थे। उनकी फिल्में पटना के सिनेमा हॉल में सिल्वर जुबली मनाती थीं। लगभग 25 सप्ताह तक फ़िल्में चलीं।
टिकट 70 पैसे में मिल रहा था
वरिष्ठ रंगमंच कलाकार गुप्तेश्वर कुमार का कहना है कि पटना शहर में रिक्शा के पीछे पोस्टर चिपका कर उनकी फिल्मों का प्रचार-प्रसार किया गया। फिल्म का पोस्टर देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। वे फिल्म देखने के लिए घंटों इंतजार करते थे। तब टिकट 70 पैसे में ही मिलता था।