अब भागलपुर के सिल्क इंस्टीट्यूट में होंगे बीटेक, डीएम ने एआईसीटीई को दिए कई अहम निर्देश

भागलपुर। नाथनगर स्थित सिल्क इंस्टीट्यूट में सिल्क टेक्नोलॉजी में बी.टेक की पढ़ाई का रास्ता साफ हो गया है। एआईसीटीई से चार वर्षीय डिग्री कोर्स को मान्यता दिलाने के प्रयास चल रहे हैं, लेकिन कुछ दस्तावेजों के अभाव में इसमें बाधा आ रही थी, जिसे हटाने के निर्देश डीएम ने दिए हैं. शनिवार को डीएम सुब्रत कुमार सेन ने रेशम संस्थान की समीक्षा की और संबंधित अधिकारी से संस्थान में अधोसंरचना की विस्तृत जानकारी मांगी।

एआईसीटीई से मान्यता प्राप्त करने के लिए भवन निर्माण की आर्किटेक्ट रिपोर्ट के साथ-साथ भूमि संबंधी कागजात व म्यूटेशन मांगा जा रहा है। वहीं 80 साल से अधिक पुराने भवन को लोक निर्माण विभाग से मंजूरी और भवन के नक्शे में भी बाधा आ रही है। इसके अलावा डीएम ने समस्या को दूर करने के लिए जिला स्तर से अधिकारियों को तैनात करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही रेशम संस्थान के कर्मचारी एसडीओ के सहयोग से दस्तावेज उपलब्ध कराएंगे।

यह है संस्थान की वर्तमान स्थिति। विगत दो वर्षों से संसाधन पक्ष की ओर से महाविद्यालय को मान्यता दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। यहां 2021-22 का शैक्षणिक सत्र शुरू करने के लिए एआईसीटीई ने पिछले अप्रैल में फिर से आवेदन किया है। वर्तमान युग में प्राचार्य और शिक्षक रेशम संस्थान से विहीन हो गए हैं। 1994 में (एआईसीटीई) ने शिक्षकों की कमी सहित आवश्यक संसाधनों की कमी को पूरा करने तक इसकी मान्यता रद्द कर दी। तब से इस कॉलेज में डिग्री स्तर की शिक्षा बंद है। हालांकि इन दिनों शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के 76 बनाए गए पदों की तुलना में केवल आठ पदों की कटौती के कारण यह संस्था बंद होने के कगार पर पहुंच गई है।

Whatsapp Group Join
Telegram channel Join

रेशम उद्योग से संबंधित योजनाओं की मांगी गई जानकारी

डीएम सुब्रत कुमार सेन ने जिले में बुनकरों के लिए रेशम, हथकरघा और पावरलूम आदि के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की विस्तृत जानकारी मांगी है. कौन सी योजनाएं बंद हैं और कितने लोगों को किन योजनाओं का लाभ मिला है। बंद पड़ी योजनाओं को शुरू करने के लिए विभाग को प्रस्ताव भेजा जाएगा। केंद्रीय रेशम बोर्ड कार्यालय के वैज्ञानिक सी त्रिपुरारी चौधरी ने कहा कि रेशम के धागे बनाने के लिए बुनियादी चरखा उपलब्ध कराया जा रहा है, लेकिन कोकून की कमी और धागे की बिक्री की समस्या है। समूह बनाकर धागा बनेगा तो स्वरोजगार भी मिलेगा।